Champai Soren के दमदार एंट्री की तैयारी? या साइमन, हेमलाल मूर्मू, स्टीफन मरांडी जैसे नेता का हश्र देख हो गए सचेत
पिछले कई दिनों से झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री चंपई सोरेन चर्चा में बने हुए हैं। झामुमो से दूरी बनाने और उनके भाजपा में शामिल होने की चर्चाएं तेज ही हुई थी कि चैंपेश्वर ने खुद सामने आकर सारी खबरों का खंडन किया। झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री और जेएमएम नेता चम्पाई सोरेन ने कहा कि मेरी किसी से मुलाकात नहीं हुई। मैं यहां (दिल्ली) किसी निजी काम से आया था। मैं उनसे (भाजपा नेता से) मिलना नहीं चाहता था। भाजपा में शामिल होने की अटकलों पर उन्होंने कहा कि मैं यह नहीं समझ पा रहा हूं कि यह सब कौन कह रहा है? बता दे की चंपई सोरेन ने भले ही झामुमो से किनारा कर लिया हो लेकिन उन्होंने अभी तक जेएमएम से या अपने पद से इस्तीफा नहीं दिया है। चंपई सोरेन मंगलवार को दिल्ली से कोलकाता वापस लौट गए हैं। मोहब्बत कहां जा रहा है कि वह कोलकाता से रांची पहुंचकर आगे की रणनीति पर काम करेंगे। मैं उन्होंने जीएम से किनारा करने के बाद कहा था कि उनके पास तीन विकल्प मौजूद है। अपनी पार्टी बनाना दूसरा राजनीति से संन्यास लेना और तीसरा किसी साथी के साथ हो लेना अब देखना होगा कि चम्पई इन तीन विकल्पों में से किसे चुनते हैं।
दमदार एंट्री की तैयारी
सूत्रों की मानें तो चम्पाई की बीजेपी में दमदार एंट्री कराने की योजना है। दिल्ली से अपने गृहक्षेत्र लौट आए हैं। चम्पाई भाजपा में अपनी शुरुआत शक्ति प्रदर्शन के साथ करेंगे। उन्हें शामिल कराने को भाजपा अध्यक्ष नड्डा आ सकते हैं । पत्रकारों के सवाल पर कहा, भाजपा के किसी नेता से मुलाकात नहीं हुई है। वह निजी काम से दिल्ली गए थे। भाजपा में शामिल होने की चर्चाओं को उन्होंने अफवाह बताया।
चंपई सोरेन के पास क्या विकल्प
झामुमो से विद्रोह के बाद चंपई सोरेन के पास सीमित विकल्प बचे हैं। पहला विकल्प जिसकी चर्चा मीडिया में भी खूब हो रही है कि वह बीजेपी में शामिल हो सकते हैं। कल पिए है कि वह किसी राजनीतिक दल का गठन कर सकते हैं। हालांकि झारखंड के विधानसभा चुनाव में अब कुछ महीनो का वक्त शेष रह गया है, ऐसे में नया संगठन खड़ा करना दूर की कौड़ी साबित होगी। चंपई सोरेन झा�����खंड के स्थानीय राजनीति करने वाले जयराम महतो के साथ मिलकर चुनाव में जा सकते हैं।
एसटी वोट हासिल करने में करनी पड़ रही मशक्कत
2019 में हुए विधानसभा चुनाव और हाल ही में संपन्न हुए लोकसभा चुनाव में बीजेपी की कमजोरी उभरकर सामने आई है। पांच वर्ष पहले 2019 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी राज्य की आदिवासियों के लिए सुरक्षित 28 सीटों में सिर्फ दो सीटें जीत पाई थी। वहीं इस बार लोकसभा चुनाव में राज्य की सभी पांच आदिवासी सुरक्षित सीटें हार गई। इससे यह स्पष्ट है कि चुनाव में जीत-हार में सर्वाधिक भूमिका अदा करने वाले आदिवासी समाज का वोट हासिल करने के लिए भाजपा को अभी खासी मशक्कत की जरूरत है।
जेएएमएम छोड़ने वाले नेताओं को नहीं मिला जनता का साथ
चंपई सोरेन बीजेपी में शामिल होंगे या नहीं ये तो अभी साफ नहीं लेकिन उनसे पहले भी झामुमो छोड़ने वाली फेहरिस्त में कई नाम शामिल हैं। एक दौर में जेएमएम की राजनीति में सूरज मंडल को शिबू सोरेन के बाद दूसरा सबसे कद्दावर नेता माना जाता था। सूरज मंडल ने भी जेएमएम से विद्रोह कर के रामदयाल मुंडा के साथ मिलकर झारखंड विकास दल का गठन किया था। उनकी राजनीति भी लगभग खत्म हो गयी। कृष्णा मार्डी ने तो पार्टी तोड़कर 1992 में झामुमो मार्डी गुट बना लिया था। बाद में बीजेपी, आजसू और कांग्रेस में भी शामिल हुए। लेकिन कभी राजनीतिक सफलता का स्वाद नहीं चख सके। इसके अलावा संथाल के कद्दावर नेता स्टीफन मरांडी ने झामुमो छोड़ नए राजनीतिक दलों में अपना टिकाना तलाशा। लेकिन फ्लॉप साबित हुए। हां इस मामले में अर्जुन मुंडा और विद्युतवरण महतो अपवाद हैं।