क्या कूटनीतिक कसौटी पर खरा उतरा भारत?
PM Narendra Modi Ukraine Visit: प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की यूक्रेन यात्रा ऐतिहासिक साबित हुई है. क्योंकि उन्होंने संघर्षग्रस्त देश को रूस के साथ ढाई साल से चल रहे संघर्ष को समाप्त करने के लिए कूटनीतिक समाधान खोजने में मदद करने की शपथ ली है. यूक्रेनी राष्ट्रपति वोलोडिमिर ज़ेलेंस्की के साथ बातचीत के दौरान मोदी ने कहा कि समाधान का रास्ता केवल बातचीत और कूटनीति के ज़रिए ही निकाला जा सकता है और हमें बिना समय बर्बाद किए उस दिशा में आगे बढ़ना चाहिए. दोनों पक्षों को इस संकट से बाहर निकलने के लिए एक साथ बैठकर रास्ता निकालना चाहिए.
उन्होंने कहा कि मैं आपको आश्वस्त करना चाहता हूं कि भारत शांति की दिशा में किसी भी प्रयास में सक्रिय भूमिका निभाने के लिए तैयार है. अगर मैं व्यक्तिगत रूप से इसमें कोई भूमिका निभा सकता हूं तो मैं ऐसा करूंगा. मैं आपको एक मित्र के रूप में आश्वस्त करना चाहता हूं. यह कदम नई दिल्ली की ‘पीसमेकर’ की भूमिका निभाने की बढ़ती इच्छा पर जोर देता प्रतीत होता है.
संतुलन बनाना
हालांकि, इसके साथ ही यह यात्रा और उसके बाद हुई द्विपक्षीय बैठक भारत की नाजुक संतुलनकारी भूमिका की ओर भी इशारा करती है. क्योंकि वह पश्चिम के साथ, जिसके साथ वह अधिक सहयोग चाहता है तथा अपने सदाबहार मित्र रूस के साथ पेचीदा संबंधों को संभालने का प्रयास कर रहा है. विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कहा कि प्रधानमंत्री ने एक अभिनव समाधान विकसित करने के लिए सभी हितधारकों के बीच “व्यावहारिक जुड़ाव” की आवश्यकता दोहराई, जो व्यापक स्वीकार्यता बनाने और शांति और स्थिरता में योगदान करने में मदद करेगा.
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि भारत पश्चिमी देशों, खासकर अमेरिका के साथ अपनी साझेदारी बढ़ाना चाहेगा और इस गति को बाधित नहीं करना चाहेगा. भारत में अमेरिकी राजदूत एरिक गार्सेटी ने हाल ही में कहा कि इस रिश्ते को ‘हल्के में नहीं लिया जाना चाहिए’. उन्हें लगता है कि भारत को भी पश्चिमी देशों की जरूरत है. क्योंकि चीन, उसके एशियाई प्रतिद्वंद्वी और रूस ने हाल के वर्षों में घनिष्ठ संबंध बनाए हैं. जुलाई में मॉस्को यात्रा के दौरान रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन को गले लगाने के लिए प्रधानमंत्री मोदी की काफी आलोचना हुई थी, जिसे ज़ेलेंस्की ने ‘बड़ी निराशा’ और ‘शांति प्रयासों के लिए विनाशकारी झटका’ बताया था.
आशावाद की भावना
ज़ेलेंस्की ने कहा कि वह भारत की यात्रा के लिए उत्सुक हैं. क्योंकि यह उनके देश और रूस के बीच युद्ध को समाप्त करने के वैश्विक कूटनीतिक प्रयासों में एक महत्वपूर्ण कदम हो सकता है. ज़ेलेस्की ने भारतीय मीडिया से बातचीत के दौरान एक सवाल के जवाब में कहा कि भारत एक बड़ा प्रभावशाली देश है, न केवल दुनिया में बल्कि बहुत ही संशयी देशों के बीच भी. अगर हम इस युद्ध और रूस के प्रति भारत के रवैये को बदल देंगे तो हम युद्ध को रोक देंगे. क्योंकि पुतिन इसे रोकना चाहेंगे. पीएम मोदी पुतिन से ज़्यादा शांति चाहते हैं. समस्या यह है कि पुतिन (शांति) नहीं चाहते. मुझे नहीं पता कि उन्होंने अपनी बैठक के दौरान क्या बात की.
ज़ेलेंस्की ने कहा कि मोदी की यात्रा और शांति प्रयासों को आगे बढ़ाने की उनकी मंशा उन्हें आशावाद की भावना देती है. उन्होंने इस बात पर ध्यान दिया कि जितना संभव हो सके, उतने वैश्विक अभिनेताओं को अंतरराष्ट्रीय कानून के मौलिक मानदंडों पर अपना रुख स्पष्ट रूप से व्यक्त करना चाहिए और मूर्त रूप में अपना समर्थन प्रदर्शित करने के लिए यूक्रेन का दौरा करना चाहिए. बाद में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस को संबोधित करते हुए जयशंकर ने कहा कि आज हम इस बात के लिए बहुत उत्सुक हैं कि यह संघर्ष समाप्त हो जाना चाहिए. हम जो कुछ भी कर सकते हैं, करने को तैयार हैं. क्योंकि हमें लगता है कि इस संघर्ष का जारी रहना भयानक है. जाहिर तौर पर यूक्रेन के लिए और दुनिया के लिए भी.
ज़ेलेंस्की की स्पष्ट बात
हालांकि, ज़ेलेंस्की ने संघर्ष के शांतिपूर्ण समाधान के लिए प्रधानमंत्री मोदी की इच्छा की सराहना की. लेकिन उन्होंने कुछ स्पष्ट बातें भी कहीं और भारत पर कच्चे तेल की खरीद के माध्यम से रूस की ‘युद्ध अर्थव्यवस्था’ को बनाए रखने में मदद करने का आरोप लगाया. उन्होंने कहा कि भारत का वैश्विक प्रभाव बहुत बड़ा है और रूसी अर्थव्यवस्था पर भी इसका बहुत बड़ा प्रभाव है. आज, यह आपके पास है और यह सच है, क्योंकि रूस के लिए निर्यात की बहुत सारी संभावनाएं बंद थीं. लेकिन भारत खुला है.
ज़ेलेंस्की ने कहा कि उन्होंने मोदी से रूस से भारत की तेल खरीद के बारे में खुलकर बात की, जिससे अरबों डॉलर की कमाई हो रही है, जो रूस की सेना को फंड करने में मदद करती है. यह अरबों डॉलर के बारे में है, जो वापस आ रहे हैं, जिसका पुतिन…केवल इसलिए उपयोग करते हैं, क्योंकि अब उनके पास वास्तव में आधिकारिक तौर पर एक युद्ध अर्थव्यवस्था है. इसलिए, उन्हें (पुतिन) महसूस करना होगा कि युद्ध कितना महंगा है और उनके समाज को यह महसूस करना होगा. उन्होंने कहा कि भारत की भूमिका – यदि आप तेल का आयात बंद कर देंगे तो पुतिन के सामने बड़ी चुनौतियां होंगी. प्रधानमंत्री मोदी पुतिन से ज्यादा शांति चाहते हैं, यही समस्या है. समस्या यह है कि पुतिन (शांति) नहीं चाहते हैं.
मोदी के साथ वार्ता के बाद मीडिया को संबोधित करते हुए जेलेंस्की ने कहा कि पिछले महीने मोदी की मॉस्को यात्रा के आरंभ �����ोने के साथ ही यूक्रेन के सबसे बड़े बच्चों क����� अस्पताल पर रूस द्वारा किया गया हमला यह स्पष्ट करता है कि राष्ट्रपति पुतिन भारत या उसके नेता का सम्मान नहीं करते हैं. ज़ेलेंस्की ने अस्पताल पर हमले पर तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की थी, जो मॉस्को में रूसी नेता के निजी आवास पर बैठक के दौरान मोदी द्वारा पुतिन को गले लगाने की तस्वीरों के साथ मेल खाता था. उन्होंने उस समय एक्स पर पोस्ट किया था कि यह एक बहुत बड़ी निराशा है और शांति प्रयासों के लिए एक विनाशकारी झटका है कि दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के नेता ने मॉस्को में ऐसे दिन दुनिया के सबसे खूनी अपराधी को गले लगाया.
बता दें कि फरवरी 2022 में रूस द्वारा यूक्रेन पर आक्रमण करने के बाद से भारत स्पष्ट रूप से तटस्थ रहा है तथा दोनों पक्षों के साथ मजबूत व्यापारिक और राजनयिक संबंध बनाए रखने वाले कुछ देशों में से एक है. हालांकि, मॉस्को के साथ संबंध तोड़ने से इनकार करने या कम से कम सार्वजनिक रूप से आक्रमण की निंदा करने से कीव और उसके पश्चिमी साझेदारों को काफी चिढ़ हुई है. खासकर जुलाई में मोदी की रूस यात्रा के बाद – एक ऐसा कदम, जिसे वाशिंगटन में चिंता के साथ देखा गया और ज़ेलेंस्की ने इसे एक बड़ी निराशा और शांति प्रयासों के लिए एक विनाशकारी झटका करार दिया.
विदेश नीति में अपनी रणनीतिक स्वायत्तता के प्रति प्रतिबद्ध भारत ने रूस से रियायती दरों पर तेल खरीदना जारी रखा है. जबकि पश्चिमी देशों ने न केवल मॉस्को को आर्थिक रूप से कमजोर करने, बल्कि उसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अलग-थलग करने का प्रयास किया है. अगर हाल के वर्षों में रूस से भारत के रक्षा आयात में गिरावट देखी गई है. क्योंकि नई दिल्ली अपने हथियार आपूर्तिकर्ताओं में विविधता लाने और घरेलू हथियार उत्पादन को बढ़ावा देने का प्रयास कर रहा है, फिर भी विशेषज्ञों का मानना है कि रूसी हथियारों के विशाल भंडार का अर्थ है कि मॉस्को कई दशकों तक एक महत्वपूर्ण साझेदार बना रहेगा. भले ही यह संयुक्त उद्यमों के रूप में ही क्यों न हो.
इसके अलावा भारत रूस के साथ अपने घनिष्ठ संबंधों को और आगे बढ़ाना चाहेगा, ताकि वह मॉस्को के बीजिंग की ओर झुकाव को सीमित कर सके. संभवतः यही कारण है कि उसने अब तक कई संयुक्त राष्ट्र प्रस्तावों का समर्थन करने से इनकार कर दिया है, जिसमें रूस से यूक्रेन पर आक्रमण बंद करने का आह्वान किया गया है.