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माइक वाल्ट्ज के जरिए चीन को संदेश, ट्रंप ने बनाया है अपना एनएसए

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Mike Waltz News: वैसे तो अंतरराष्ट्रीय संबंधों मे इमोशन की कोई भूमिका नहीं होती। फिर भी अगर दो देशों के राष्ट्राध्यक्षों के बीच आत्मीय संबंध बने तो जटिल मुद्दों को समझने या समझाने में सहुलियत होती है। दरअसल इसे लिखने के पीछे की वजह साफ है। अमेरिका ने नये राष्ट्रपति को डोनाल्ड ट्रंप (Donald Trump) के रूप में चुन लिया है और उसके बाद वैश्विक स्तर पर गुणा गणित का दौर भी शुरू हो चुका है कि ट्रंप किसके साथ किस तरह से पेश आ सकते हैं। अगर बात एशिया की करें तो चीन के साथ अमेरिका का रिश्ता उनके पहले कार्यकाल की तरह रहेगा या उसमें किसी तरह का बदलाव आएगा। इन सबके बीच माइक वाल्ट्ज को ट्रंप ने अपना एनएसए बनाया है और इसके जरिए अमेरिका का भारत और चीन के साथ रिश्ते को समझा जा सकता है।�

कौन हैं माइक वाल्ट्ज
50 साल के� वर्षीय वाल्ट्ज एक सेवानिवृत्त सेना कर्नल हैं, जिन्होंने ग्रीन बेरेट के रूप में काम किया है, जो अमेरिकी सेना की एक विशिष्ट विशेष बल इकाई है। वह 2019 से अमेरिकी प्रतिनिधि सभा के सदस्य हैं। वह राष्ट्रपति जो बिडेन की विदेश नीति के मुखर आलोचक रहे हैं। इसे भारत के लिए अब तक की सबसे महत्वपूर्ण नियुक्ति के रूप में देखा जा रहा है, क्योंकि वाल्ट्ज भारत कॉकस के प्रमुख हैं और उन्होंने भारत के साथ अमेरिकी रक्षा और सुरक्षा सहयोग को आगे बढ़ाने की वकालत की है। उन्होंने अफगानिस्तान और मध्य पूर्व में कई अमेरिकी तैनाती में काम किया, जहां उन्होंने कांस्य स्टार सहित कई पुरस्कार अर्जित किए। उन्होंने तत्कालीन रक्षा सचिव डोनाल्ड रम्सफेल्ड (Waltz Views on Taliban) के तहत पेंटागन में अफगानिस्तान नीति सलाहकार के रूप में भी काम किया। हाउस आर्म्ड सर्विसेज कमेटी के अध्यक्ष के रूप में, माइक वाल्ट्ज को राष्ट्रपति बिडेन द्वारा अफगानिस्तान से अमेरिकी सैनिकों की वापसी के बारे में आक्रामक सवाल उठाने के लिए जाना जाता था, जिसके कारण तालिबान के हाथों में बड़ी संख्या में हथियार चले गए थे।

ट्रंप के कट्टर समर्थक हैं माइक वाल्ट्ज
वाल्ट्ज डोनाल्ड ट्रम्प के कट्टर समर्थक हैं और उन्होंने 2020 के राष्ट्रपति चुनाव के परिणाम को पलटने के उनके प्रयासों का भी समर्थन किया। उन्होंने ट्रंप के उन आरोपों को भी दोहराया है कि सेना “जागृत” है जो कथित तौर पर नरम है और विविधता और अन्य समावेशी कार्यक्रमों पर “बहुत अधिक केंद्रित” है। विशेष रूप से, वाल्ट्ज चीन की कथित आर्थिक प्रथाओं, जैसे बौद्धिक संपदा की चोरी, अनुचित व्यापार प्रथाओं और अमेरिकी आपूर्ति श्रृंखला कमजोरियों के शोषण के आलोचक रहे हैं। वह ऐसी नीतियों की वकालत करते हैं जो चीनी विनिर्माण पर अमेरिकी निर्भरता को कम करती हैं और अमेरिकी प्रौद्योगिकी को सुरक्षित करती हैं। वाल्ट्ज ने अशांत शिनजियांग में अपने उइगर मुस्लिम अल्पसंख्यक के साथ चीन के व्यवहार और COVID-19 महामारी की उत्पत्ति में इसकी कथित भूमिका का विरोध करने के लिए बीजिंग में 2022 शीतकालीन ओलंपिक के अमेरिकी बहिष्कार की भी वकालत की।�

ट्रेड-टैरिफ पर बढ़ेगी तनातनी
जानकार कहते हैं कि किसी भी देश की नीति में अगर आपसे जुड़े लोगों को मौका मिलता है तो जाहिर सी बात है कि विरोध के बिंदुओं पर बातचीत करने का मौका मिलता है। चीन और अमेरिका के संबंध उतार-चढ़ाव वाले रहे हैं। अगर आप ट्रंप के पहले कार्यकाल को देखें तो व्यापार के मुद्दे पर खासतौर से टैरिफ पर रवैया आक्रामक रहा है। ट्रंप का मानना है की चीनी सरकार(USA China Relation) की व्यापारिक नीति का सबसे अधिक नुकसान अमेरिका को हो रहा है और इस पर लगाम लगाने की जरूरत है। जहां तक दक्षिण चीन सागर का सवाल है उस विषय पर बिडेन प्रशासन की नीति को ही ट्रंप भी आगे लेकर जाएंगे ऐसे कयास लगाए जा रहे हैं।�

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