जानिए कैसा रहा उनका राजनीतिक सफर
आज यानी की 26 अगस्त को भारतीय राजनीतिज्ञ मेनका गांधी अपना 68वां जन्मदिन मना रही हैं। मेनका गांधी लाइमलाइट और विवादों से दूर रहती हैं। उनका अधिकतर ध्यान समाजसेवा और पशुओं की देखभाल व सेवा में निकलता है। मेनका गांधी का पशुप्रेम जगजाहिर है। मेनका गांधी देश के सबसे पुराने राजनैतिक गांधी परिवार से ताल्लुक रखती हैं। वह देश की पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी बहू और संजय गांधी की पत्नी हैं। आइए जानते हैं उनके जन्मदिन के मौके पर मेनका गांधी गांधी परिवार की बहू बनने से लेकर भाजपा की सांसद बनने तक के रोचक सफर के बारे में…
जन्म और परिवार
नई दिल्ली में 26 अगस्त 1956 को मेनका गांधी का जन्म हुआ था। महज 17 साल की उम्र में उनको पहला मॉडलिंग ब्रेक मिला। उनके बॉम्बे डाइंग के एड को देख पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के स्वर्गीय पुत्र संजय गांधी मेनका के दीवाने हो गए। साल 1973 में मेनका औऱ संजय की मुलाकात हुई और यह दोनों एक-दूसरे के प्यार में पड़ गए।
संजय और मेनका एक-दूसरे से शादी करना चाहते थे, लेकिन इंदिरा गांधी उनके रिश्ते के खिलाफ थीं। लेकिन आखिरी में 23 सितंबर 1974 को संजय और मेनका शादी के बंधन में बंध गए। संजय गांधी मेनका से 10 साल बड़े थे। वहीं शादी के बाद रातों रात इंदिरा गांधी ने मेनका के बॉम्बे डाइंग के पोस्टर हटवा दिए थे।
राजनीति और संघर्ष
साल 1982 में मेनका गांधी पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा। दरअसल, एयर क्रैश में इंदिरा गांधी के बेटे और मेनका के पति संजय गांधी का निधन हो गया। जिसके बाद राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों द्वारा आयोजित रैलियों में मेनका गांधी हिस्सा लेने लगीं। सत्ता हथियाने के शक में मेनका गांधी की सास यानी की इंदिरा गांधी ने उनको घर से निकाल दिया। उस दौरान मेनका गांधी की उम्र सिर्फ 23 साल की थी और वरुण गांधी महज 100 दिनों के थे।
ऐसे में मेनका गांधी की जिंदगी संघर्षमय मोड़ पर आकर खड़ी हो गई थी। हालांकि संजय गांधी के रहने पर मेनका अक्सर उनके साथ दौरों पर जाया करती थीं। पति संयज गांधी और कांग्रेस पार्टी को मजबूती प्रदान करने के लिए मेनका गांधी मासिक पत्रिका सूर्या का प्रकाशन करती थीं। लेकिन संजय गांधी की मौत के बाद सब कुछ बदल गया।
राजनीति में आजमाई किस्मत
ससुराल से निकाले जाने के बाद मेनका गांधी अपने बेटे वरुण गांधी के साथ एक कमरे का घर लेकर रहने लगीं। उन्होंने पति संजय गांधी का ट्रक बेचकर कुछ पैसे एकत्र किए और किताबों व मैगजीन के लिए लिखना शुरूकर दिया। धीरे-धीरे मेनका गांधी खुद को स्थापित करने में जुट गईं। उन्होंने राष्ट्रीय संजय मंच की स्थापना की और आंध्र प्रदेश के विधानसभा चुनाव में उनकी पार्टी ने पांच में से चार सीटों पर जीत भी हासिल की।
इसके बाद साल 1984 में मेनका गांधी ने राजीव गांधी के खिलाफ अमेठी से लोकसभा चुनाव लड़ा था, लेकिन इस चुनाव में उनको हार का सामना करना पड़ा था। फिर साल 1988 में वह वीपी सिंह की जनता दल में शामिल हो गईं और साल 1989 में वह पहली बार सांसद बनीं और फिर केंद्रीय मंत्री बनीं। इसके बाद मेनका गांधी ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। वह लगातार पीलीभीत से सांसद चुनी गईं। वहीं वह सुल्तानपुर से भी सांसद रह चुकी हैं।