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अडानी का वैश्विक संकट: क्या हिंडनबर्ग से भी बड़ी है ये चुनौती?

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Adani Group allegations: आरोपों और झटकों की नई लहर में अडानी समूह कई देशों में बढ़ती परेशानियों के कारण गहन जांच के दायरे में आ गया है. केन्या में रद्द हुई परियोजनाओं से लेकर ऑस्ट्रेलिया में मानवाधिकारों के आरोपों तक समूह की विश्वसनीयता और वित्तीय स्थिरता अभूतपूर्व पैमाने पर सवालों के घेरे में है. यह अमेरिका में वित्तीय कदाचार का आरोप लगाते हुए एक संघीय अभियोग के बाद आया है. नीलू व्यास द्वारा होस्ट किए गए ‘द फेडरल’ के ‘कैपिटल बीट’ ने इस घटनाक्रम और इसके निहितार्थों का विश्लेषण करने के लिए सुप्रीम कोर्ट के वकील संजय हेगड़े और द फेडरल के बिजनेस एडिटर गिरि प्रकाश के विचार शेयर किए.

बढ़ते वैश्विक झटके

अडानी की मुसीबतें अब भारत से परे बढ़ रही हैं. केन्या में सरकार ने हाल ही में दो प्रमुख परियोजनाओं—736 मिलियन डॉलर के हवाई अड्डे के सौदे और 30 साल की बिजली परियोजना—को अनिर्दिष्ट अनियमितताओं का हवाला देते हुए रद्द कर दिया. इस बीच ऑस्ट्रेलिया में अडानी की कार्मिक कोयला इकाई पर जातिवाद और मानवाधिकारों के उल्लंघन के आरोप हैं. आदिवासी समूहों ने अडानी के कर्मचारियों पर खदान के पास अपनी सांस्कृतिक प्रथाओं में बाधा डालने का आरोप लगाया है और देश के मानवाधिकार आयोग में शिकायतें दर्ज की हैं.

इन झटकों के अलावा बांग्लादेश का सुप्रीम कोर्ट अडानी के बिजली खरीद समझौतों की समीक्षा कर रहा है. जबकि अमेरिकी प्रतिभूति और विनिमय आयोग (SEC) वित्तीय कदाचार के आरोपों की जांच कर रहा है. विश्व स्तर पर समूह की प्रतिष्ठा दबाव में है. एसएंडपी ग्लोबल ने चेतावनी दी है कि ये घटनाक्रम धन जुटाने की इसकी क्षमता में बाधा डाल सकते हैं.

संकट में समूह

अडानी समूह ने अपने साम्राज्य का निर्माण बड़े पैमाने पर लोन लेकर खड़ा किया है. गिरि प्रकाश के अनुसार, इसका सकल ऋण 2014-19 में 1.07 लाख करोड़ रुपये से बढ़कर 2019-24 में 2.41 लाख करोड़ रुपये हो गया है. इस लोन का लगभग 36% घरेलू बैंकों को दिया गया है. जबकि 26% विदेशी संस्थानों से आया है. बढ़ती देनदारियों से समूह की ऋणों की सेवा करने की क्षमता पर सवाल उठते हैं. खासकर जब इसकी विश्वसनीयता वैश्विक बाजारों में कम हो रही है.

प्रकाश ने जोर देकर कहा कि अडानी का व्यावसायिक मॉडल—परियोजनाओं का अधिग्रहण करना और उनका उपयोग आगे लोन प्राप्त करने के लिए करना—लगातार नकदी प्रवाह पर बहुत अधिक निर्भर करता है. अगर एक परियोजना लड़खड़ाती है तो इससे डोमिनो प्रभाव पैदा होने का खतरा है. अमेरिकी अभियोग और अन्य आरोपों से धन की चुनौतियों और उच्च उधार लागत का सामना करना पड़ सकता है, जिससे यह अनिश्चित श्रृंखला खतरे में पड़ सकती है.

हिंडनबर्ग से भी बड़ा?

इस साल की शुरुआत में आई हिंडनबर्ग रिसर्च रिपोर्ट से तुलना की जा रही है, जिसमें अडानी पर शेयरों में हेराफेरी और धोखाधड़ी के लेखा-जोखा का आरोप लगाया गया था. जबकि इस रिपोर्ट से शेयर बाजार में गिरावट आई, संजय हेगड़े ने तर्क दिया कि वर्तमान संकट इसके व्यापक वैश्विक प्रभावों और रिश्वतखोरी, मानवाधिकारों के हनन और वित्तीय कुप्रबंधन के आरोपों के कारण इससे आगे निकल सकता है. हेगड़े ने अडानी के ऋण-संचालित विकास मॉडल की संरचनात्मक कमजोरियों पर प्रकाश डाला. उन्होंने कहा कि जब ऋण का नल सिकुड़ता है तो यह ऋण जाल में बदल जाता है. यह न केवल अडानी को प्रभावित करता है, बल्कि एलआईसी और म्यूचुअल फंड जैसे भारतीय सार्वजनिक संस्थानों द्वारा किए गए निवेशों को भी खतरे में डालता है, जिससे व्यापक वित्तीय पारिस्थितिकी तंत्र प्रभावित हो सकता है.

सरकार की दुविधा

भारत सरकार को अडानी समूह के साथ कथित निकटता के बारे में बढ़ते सवालों का सामना करना पड़ रहा है. विपक्षी दल संसद के पुन: आरंभ होने पर संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) जांच की मांग करने की संभावना रखते हैं. जबकि सरकार ने पहले अडानी के खिलाफ आरोपों को भारत के आर्थिक विकास पर हमले के रूप में खारिज कर दिया है. विशेषज्ञों का तर्क है कि अब चुप्पी काम नहीं आ सकती है. हेगड़े ने बताया कि सरकार अडानी को अचानक गिरने नहीं दे सकती. क्योंकि इससे वित्तीय दहशत फैल सकती है. हालांकि, समूह की अत्यधिक रक्षा करने से सरकार कुलीन पूंजीवाद की आलोचना के लिए उजागर हो सकती है. महाराष्ट्र और झारखंड के चुनाव परिणाम आने के साथ राजनीतिक परिणाम आगे प्रवचन को आकार दे सकते हैं.

आगे क्या?

निकट भविष्य अ���िश्चित बना हुआ है. अडानी ऋण दायित्वों को पूर����� करने के लिए संपत्तियों की बिक्री का सहारा ले सकता है. लेकिन ऐसी संकटग्रस्त बिक्री से समूह की बाजार स्थिति कमजोर हो सकती है. इस बीच, वैश्विक निवेशक अमेरिकी अभियोग और अन्य आरोपों पर भारतीय नियामकों की प्रतिक्रिया की बारीकी से जांच करने की संभावना रखते हैं.

जैसे ही संसद एक तूफानी सत्र की तैयारी कर रही है और वैश्विक बाजार बारीकी से देख रहे हैं. अडानी समूह एक चौराहे पर खड़ा है. यह इस संकट से उबर सकता है या अपरिवर्तनीय गिरावट का सामना कर सकता है. यह अपनी विश्वसनीयता को फिर से बनाने और अपने ऋण का प्रबंधन करने की क्षमता पर निर्भर करेगा. फिलहाल, अडानी की चुनौतियां न केवल एक कॉर्पोरेट संकट का प्रतीक हैं, बल्कि भारत के नियामक और शासन तंत्र का टेस्ट भी हैं.

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